बहुत दीन बाद
थका हुआ सा मैं
जब कमरे लौटा
धूल जमी थी
डायरी पर
देखी मैंने
देखा मैंने धूल जमी थी
सपनो पे भी ..
मैंने देखा धूल जमी थी
आँखों पे भी ..
लिखना मानो भूल चूका हूँ
एक कलम थी साथ में रखी
जिसकी श्याही
भूल चुकी है लिखना -पढना
फिर सोचा
गुमसुम बैठा मैं
लिखने को मन था आतुर
सोच फिर क्या लिखू
खुद को थोडा समझाया
मन को अपने बहलाया
फिर भी मैंने कलम उठाया
श्याही को चलना सिखलाया
धूल झाड़ी हर जगह की
सपनो पे भी
लिखने फिर से बैठ गया
कुछ नया
क्या लिखता मैं समझ न आया
कलम को सिरहाने रख आया
डायरी फिर से धूल है खाती
कलम खुद को तनहा पाती
मैं भी फिर से भूल गया हूँ
लिखना पढना
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