Wednesday, August 19, 2009

आख़िर कितना...

इंतज़ार कर रही थी आँखें...
कुछ कह रही थी आँखें...
वो पास आती बाहें ....
लगा की जैसे तू मुझे चाहे....
पर बस फिर तुने पूछा...
कि प्यार तुझे मुझसे "आख़िर कितना"..
पहले मुझे ख़ुद पे फिर तुझ पे हसी आई..
की हाय ये तेरी कैसी रुसवाई..
अब पूछा ही है तो सुन ही ले..


सूरज को जितना गर्मी से...
चाँद को जितना नरमी से...
रांझे को जितना हीर से..
कमान को जितना तीर से...
पेड़ को जितना चाय से...
तेरी इठलाती उस काया से...
पुजारी को जितना मूरत से...
आईने को जितना सूरत से...
चूड़ी को जितना कलाई से...
नींद को जितना अंगडाई से...
हवा को जितना आकाश से...
मुझे प्यार तेरी हर बात से...
तेरी उस अंगडाई से ...
दुरी की उस तनह्हाई से...
तेरे पैरो की पायल से...
तेरे आंखों के काजल से...
पायल की उस रुनझुन से ...
तेरे बालो की उलझन से...
तेरे दुप्पटे की सिलवट से...
तेरी बदलती उस करवट से...
तेरी पैरो की उस आहट से...
तेरी बातों की राहत से...
तेरी प्यारे उन गीतों से...
तेरी तम्मन्ना के प्रीतो से...


तुझे मै बस इतना प्यार करूँ .....
कि बस इतना प्यार करूँ...

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