Saturday, September 5, 2009

बोलता हूँ...

जीवन के मापदंडों को मैंने बराबर मापा था ..
कि शिखर से नहर तक सब कुछ नापा था ..
पर आज
शून्य व्योम में मैं भटकता
की कोहरा ये चहुओर सघन होता
जड़ता के बहाव को मैंने समझा
झूठा था मैं या सत्य था अपरिचित सा...
कभी कथित आरोपी मैं
कभी चकित विद्रोही मैं
पर
मैं अब
तोड़ता हूँ मौन... हिमे बाँध मैं आज पुनः
बोलता हूँ
................................

No comments:

Post a Comment