Saturday, September 5, 2009

ऐसी हीर ही नही...

तमन्ना के उठते भवरों को बांधना ही मत..
क्यूँकी बाँध सको तुम ऐसी कोई ज़ंजीर ही नही…
तेरी छाया ही है अब मेरे मन में बस…
चित्रों में उतार दूँ ऐसी तस्वीर ही नही…
तेरी आहट आज भी बजती है मेरे दिल के सन्नाटे में…
तेरी आवाज़ को भुलवा दे ऐसा कोई अच्छा गीत ही नही…
तेरी होंठों की उस हसी में आता भवर क्या था…
उस हसी को भुला दू ऐसी कोई चहक ही नही…
तेरी उस महक का मैं क्या जग भी कायल था..
तेरी महक को भुलवा दे ऐसा कोई इत्र ही नही…
तू मिलेगी मुझे कभी न कभी ये उम्मीद है बस…
हाँ मानता हूँ की मेरी कमबख्त ऐसी तकदीर ही नही..
रांझा बन के “बावला” यु ही भागता ही रहा दर दर…
कोई उस की इस दिल में जगह ले ले ऐसी कोई हीर ही नही…
कोई मेरे प्यार की जगह ले ले नही हो सकता ऐसा…
शायद ये मेरे ही नसीब में नही..

4 comments:

  1. wahhh....dil ko choo gayi ye kavita....pagalpan to dikh gaya mujhe...ab pyar dekhna baaki hai...

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  2. @deepanshi dikhega yaar ... abhi us aukat ke kavi nahi hain...

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  3. hmmmm....time s d best healer.wll hlp u too

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  4. Teri mehak ko bhulva de aisa koi itra hi nahi...Beautiful!!!

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