Tuesday, November 3, 2009

मैं देखता क्या हूँ ......

मैं देखता क्या हूँ

तपती धरा ये
पागल पवन ये
ऊपर नभ ये
धूमिल थल ये
पाया कुछ नहीं
जाना कुछ नहीं
लाया कुछ नहीं
बांटा कुछ नहीं
दोष मेरा है
हाँ
दोष मेरा ही है
की मैं बस
देखता ही हूँ
बस
देखता ही हूँ..

2 comments:

  1. ye meri nyi kavita hai kripya padh ke protsahan ke do vachan kahein

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  2. are u trying to say that u only see things and never act upon them??

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