Friday, November 13, 2009

ख्वाहिश ...

मृत्यु
को जब मैं अपने इतना निकट पाता
बस यही चाहता
की ये मृत्यु कुछ टल जाए
काश ये पुनः कल फिर वापस आए
काश मैं कुछ डर्ट और जी पाता
काश मैं अपनी घड़ी ठीक करा पाता
काश मैं अपनी दाढ़ी बनवा पाता
काश मैं बच्चों को मेला ले जा पाता
काश मैं एक नई शर्ट सिल्वा पाता
काश मैं वो आस्तीन का टूटा बटन 'लगवा पाता
काश मैं नुक्कड़ के बनिए का उषर चुका पाता
काश उस रात मैं घर जल्दी आ पता
काश मैं वो सब कुछ कर पाता
पर
मृयु ने मेरी बात न सुनी
मेरे कान में कुछ कहा
मुझे और मेरी आशाओं को
साथ ले गई
क्यूंकि
मेरा तो अंत है पर मेरी आशाओं का नही ॥

3 comments:

  1. मेरा तो अंत है पर मेरी आशाओं का नही
    nicely said!!

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  2. की ये मृत्यु कुछ टल जाए
    काश ये पुनः कल फिर वापस आए...........its a cotroversy or smthing else...i din't undstnd....pls make clr.......& i agree wd saumya m'm.....ur bst line....क्यूंकि
    मेरा तो अंत है पर मेरी आशाओं का नही ॥

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  3. मृत्यु कब किसकी सुनती है । वह तो हर ही लेती है प्राण .

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