Sunday, March 28, 2010

क्यूँ ..

अक्स मेरा आज धुंधला क्यूँ है ..
स्वप्न मेरे आज झिलमिल क्यूँ है ...
अश्क मेरे आज बोझिल क्यूँ हैं ...
क्यूँ हूँ मैं फिर रोता
खुली आँखों से सोता
क्यूँ ...
कदम मेरे आज शिथिल क्यूँ है ..
मन मेरा आज विचलित क्यूँ है ...
ऊपर नभ ये आज धूमिल क्यूँ है ...
क्यूँ ...
प्रशन मेरे आज ये कम क्यूँ हैं ....
शब्द मेरे आज निशब्द से क्यूँ हैं ...
क्यूँ हूँ मैं आज फिर कुछ लिखता
कुछ तो है जो है मुझको तोड़ता ॥
पर
क्यूँ .... ॥
क्यूँ .... ॥

3 comments:

  1. nice ..bt i found it a bit repitition of ur earlier writes..

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  2. thanks saumya ... ill try to improve in future .. ya i also believe so ...

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