झुकी झुकी सी
तेरी आँखों
की शर्म
वो धीरे से उंगली
के छोर से
चेहरे पर आते बालों
का कान के पीछे
रखना और फिर
वो हलके से किताब
के पन्नो
का पलटना
तेरा वो आँखों का उठाना
और हमारी नज़र का मिलना
बस इस ही मिलन
के लिए तो
मैं अपलक तुझको
देख रहा था
तब से पथरायी
इन आँखों को
सुकून अब मिला है
तुम क्या समझोगी
मेरी वेदना
जो मेरे अन्दर ही
तब से पल रही है
जबसे तुम आई थी
अब इस मिलन के बाद
फिर तुमने अपनी
आँखे झुका ली
उस बीच एक सदी बीत गयी
अब तो बस
साँसे चल रही है
धीरे धीरे
मद्धम मद्धम
वो भी साथ छोड़
देंगी जो
आती है तेरी महक ले के
अपने संग
कम होती लगती है
दूरी अपनी
और साँसे मेरी
...............................
तेरी आँखों
की शर्म
वो धीरे से उंगली
के छोर से
चेहरे पर आते बालों
का कान के पीछे
रखना और फिर
वो हलके से किताब
के पन्नो
का पलटना
तेरा वो आँखों का उठाना
और हमारी नज़र का मिलना
बस इस ही मिलन
के लिए तो
मैं अपलक तुझको
देख रहा था
तब से पथरायी
इन आँखों को
सुकून अब मिला है
तुम क्या समझोगी
मेरी वेदना
जो मेरे अन्दर ही
तब से पल रही है
जबसे तुम आई थी
अब इस मिलन के बाद
फिर तुमने अपनी
आँखे झुका ली
उस बीच एक सदी बीत गयी
अब तो बस
साँसे चल रही है
धीरे धीरे
मद्धम मद्धम
वो भी साथ छोड़
देंगी जो
आती है तेरी महक ले के
अपने संग
कम होती लगती है
दूरी अपनी
और साँसे मेरी
...............................
Another osum piece!!
ReplyDeleteso close to the reality and nicely composed
sach me reading this, all my memories were revived,
go on man!! :)
thanks bhai
ReplyDeletebeautiful...
ReplyDeletenicely written...
ReplyDeletethis is good
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