Friday, June 25, 2010

याद....( ग़ज़ल)

इक रात यूँ ही बैठे तुम नज़र आई
कभी राहगीर तो कभी रहगुज़र बन आई
हम आज भी तेरा इंतज़ार करते हैं
तेरे हर ख्याल पे क्यों ये आँख भर आई

इक अरसा हो गया है तुमसे बिछड़े हुए अब तो
न तुम आई न तेरी कोई खबर आई
दरवाज़ा अब भी तेरी राह तकता है
इंतज़ार में दिन बीते रात अक्सर उतर आई

शायद मुझ को मालूम न था कुछ भी
तेरे जाते ही मेरी हर दुआ बेअसर बन आई
तू मुझसे दूर रह के भी मेरे ही पास रहती है
अब हर शब् भी तेरे जाने पे सेहर बन आई

कुछ लोग कहते हैं की में "बावला" सा हूँ
न जाने क्यूँ तेरे आते ही ये रंगत निखर आई
इक झलक तेरी देखे ज़माना हो गया है अब
दिन में साँसे चलती हैं यादें रात भर आई
यादें रात भर आई ....
यादें रात भर आई ....

4 comments:

  1. अच्छी रचना ,बधाई

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  2. its awsome
    i m proud to be a sis of such a gud writer

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  3. bahut badhiyaan ...

    par ek humble suggestion hai..
    ghazal ke do important part hote hain ...behr aur radeef ...behr ke baad turant radeef aa jana chahiye ghazal ke case me..

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