हर रोज़ उसे मैं देखता हूँ
आँखें नीचे
बाल संभाले
अपने अंगो को
ध्यान से धाके
मुह सिये
चुपचाप जिए
वो कौन है
कौन है वो
क्या वो माँ बन पाएगी
??
क्या वो औरत कहलाएगी
??
वह तो है बस बच्चा जनने की
एक मशीन
न है माता
न है गृहणी
न है पत्नी
है तो बस
एक मशीन
जिसके पुर्जे ढीले पड़े तो
रखो किसी स्टोररूम में
जब एक नयी मशीन
उसकी जगह न ले ले
बाज़ार सजा है मशीनों से
गोरी
काली
गाने वाली
चौका बर्तन करने वाली
पौडर लिपस्टिक और है लाली
जब तक दमकता है चेहरा
तब तक काम की लगती है
झुरियों वाली मशीन भला किसे पसंद है
पड़ी रहे किसी स्टोररूम में
आँखे मूंदे
न है माता
न है गृहणी
न है पत्नी
है तो बस
एक मशीन
जो बच्चा जने
बिस्तर सेके
रोटी बनाये
पिरस खिलाये
लात भी कहए
चलती जाए
थक हार के फिर से
मन बहलाए
चलती जाए
चलती जाए
कौन है वो
औरत अबला नारी
या एक
"मशीन"
........
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
ReplyDeleteBahut sunder rachna..., aurat ki bebasi ka ehsaas karati rachna...
ReplyDeletesanjay ji bahut bahut dhanyavaad ..
ReplyDeleteanjana ji aapka haardik abhaari