मेज़
पर पड़ी ...
टूटी हुई सेठी की कलम
वो आधी बिखरी श्याही की दवात
कुछ पन्ने ईंट से दबे
कुछ फडफडाते- छटपटाते
मेरी तरह
कुछ फडफडाते- छटपटाते
मेरी तरह
रुके है अब भी
आँखों में आंसू
और अधरों पे शब्दों की तरह
एक अधूरी कविता
पूरी करनी है
पर लालटेन आखिरी सांसें ले रही है
मेरी तरह
मरने से पहले मुझमे सहस आया
लौ ने भी साथ निभाया
कलम थामा
चाभी का एक पुराना छल्ला
लटका था सिरहाने
कुछ चाभियाँ
शायद कोई राज़ खोले
एक टूटी ऐनक
जो टिकी रहती थी कानो के सिरहाने
कुछ टूटे पैसे बिखरे
शायद मेरे टूटे बिखरे
सपने खरीदे
कलम थमा
बस लिखा
क्या
??
"माँ"
....
बहुत सुंदर कविता!
ReplyDeletedhanyavaad
ReplyDeleteबहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeleteabhar
ReplyDeletebehtreen bhi chota shabad h apki kalam ki takat ko srhane ke liye......
ReplyDeleteawesome...
keep it up