Thursday, November 11, 2010

जीवन की आपाधापी में .......

जीवन की आपाधापी में
हाँ जीवन की आपाधापी में
कहीं भूल चला खुद को
कहीं छोड़ चला सबको
जीवन की आपाधापी में

संजोये कितने सपने
न जाने कौन हैं अपने
लगे हर कोई पराया
था जो मेरा अपना
उसे हर रोज़ गंवाया
जावन की आपाधापी में

न होती आँखें अब नाम
क्यों होते सपने अब कम
न झरते नैनोके बादल
क्यों पिघला आँख का काजल
जीवन की आपाधापी में

न मेरा हाथी घोडा
न मेरा फूटा फोड़ा
वही नानी की कहानी
वही मदमस्त रवानी
वो कितनी हाथापाई
वो मेरा दही मलाई
जीवन की आपाधापी में
कहीं भूल चला खुद को
कहीं छोड़ चला सबको
जीवन की आपाधापी में


1 comment:

  1. आखिरी पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी... पूरी कविता भी खूबसूरत है, परन्तु अंत गज़ब का है...

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