Thursday, March 10, 2011

मुट्ठी भर सपने .....

मुट्ठी भर सपने
अपनी जेब में लिए
हाँ
मुट्ठी भर सपने
अपनी जेब में लिए
निकल चूका हूँ
इन राहों पर
की न जाने कहाँ
टूट जायें
बिखर जायें
मेरे मुट्ठी भर सपने
सपने मेरे

सपना
हाँ
सपना था
घड़ा भर कंचे जोड़ने का
पेड़ों से आम तोड़ने का
पत्थर से गगन फोड़ने का
सपना था
नदी को पलट मोड़ने का
पतंग से व्योम नापने का
हवा से तेज़ भागने का
सपना था
छत से चाँद ताकने का
नभ पर तारे टांगने का
बारिश में भीग नाचने का
सपना था ...
क्यों
मुठी कुछ बड़ी हो गयी
नहीं
बस मुट्ठी भर सपने
संजोये बड़े मन से
की न जाने कब
टूट जायें
बिखर जायें
मेरे
अपने
मुठी भर सपने ,....

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