टूटे हुए शाख के पत्ते से पुछा
की ज़मीं पर पड़ा तू..
तड़पता हिया 
मचलता है 
छटपटाता है
कभी तू भी हरा रहा होगा
हरे भरे 
छतनार वृक्ष का एक हिस्सा होगा
तेरा भी कोई अपना किस्सा होगा
कभी तेरी भी डाली पर 
परिंदे बैठते होंगे
चहचहाते होंगे
माँ चिड़िया 
अपने बच्चो के लिए
तेरी ही शाख पे 
बड़े जातां से
घोंसला बनती होगी
फिर कभी ...
किसी  रोज़ ...
आंधी आई ..
घोंसला बिखरा
तिनका तिनका 
टुकड़ा टुकड़ा 
बच्चे जो अभी
घोंसलों मिएँ ही थे
अन्डो से निकले न थे
जिन्होंने
छानी हुई
दुपहरी नहीं देखी थी
किनके नन्हे
कोमल हाथों ने
सूरज की किरणों को 
नहीं सहलाया था
जो कोहरे को जान न पाए थे 
जो अभी भी 
अपनी ही दुनिया में थे 
बता उस आंधी में तेरा क्या हुआ
बोला वो
टुटा मैं 
हाँ टूटा मैं
पर 
माँ के आंसुओं के बाद.....
 
 
No comments:
Post a Comment