Wednesday, September 30, 2009
प्रलय है आया ....
कुछ दूर चलने पे अहसास हुआ…
की क्या मैं कुछ भूल आया हूँ…
हाँ धरा तो साथ है मेरे …
पर क्या व्योम कहीं भूल आया हूँ…
विचारों के जब मंथन के बाद सोचता हूँ पुनः…
की क्षितिज के बंद तालों के भीतर मैं उतर पाता अंततः..
छल कपट और अन्धकार में लिप्त रहता हूँ मगर…
की आज भी मैं सच उजाला ही ढूंढता हूँ हर जगह…
हर ओर देखा और देखा और अंततः यही है पाया…
हाँ दूर नही है मित्रों लो अब “प्रलये है आया”…
मृत्यु और संघर्ष से झूझते लोगों से पूछो…
कि जीवन ख़ुद कहे जो ले लो मुझको तो क्या जियोगे तुम ये सोचो…
खून ही है और रक्तस्त्राव है हर और…
घूम ली चारों दिशायें और पाया कोलाहल हर और…
मौत को करीब लाती आतंक की ये मजबूत डोर…
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Pralay ka ehsaas to hua hain..
ReplyDeletebhumi to pass hain par assman kahin jhoot ke badlon mein chup gaya hain...
satya ko talashti hoon par is tej hawaon mein
kahin kho na jaon...
par woh manzil hi kya jo toofan ko na guzre..
satya to paana hi hain vyom mein chupe surya ko dekhna hain....
well done ananya......
thankyouuuuu...:)
ReplyDeleteu think quite deep...well done
ReplyDeletethanks saumya u r a true critiqu
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