घुन सा
गेहूं में पिस्ता
की यह ह्रदय स्वेद
हलके हलके रिसता
की क्यों मैं अब तक एडियाँ घिसता
घुटनों से
कोहनी तक
सब सामान ही
लगता
मेरा ये धड
पड़ा हुआ जड़
अब विचार
भी हैं लाचार
की ये सूर्य का ताप
पानी बनता भाप
आस्तीन में पलते सांप
की क्यों मैं ही
पिस्ता हूँ ..... घुन सा
रिसता हूँ .......स्वेद सा
nice piece....
ReplyDeletei like it...
ReplyDelete@sam @deep
ReplyDeletethanks a ton both ov u ...