सघन ये वन
निशा ये गहन
करता मैं हूँ वहां
ह्रदय में दहन
चकित ये मन
आरोपी मैं बन
भागता हूँ ख़ुद से अब
कि मेरा
दोष बस इतना
कि मैं ढूंढता हूँ सत्य
मर्म से संपूर्ण
बिना जाने उसे
मैं हूँ अपूर्ण
सत्य कि पीड़ा
फिर भी खड़ा
हूँ मैं यहीं
कि साक्ष्य
हूँ मैं
अर्ध सत्य का ...
baba, aap to ab maunjh chuke hain is feild mein......awesome and flawless work as usual
ReplyDeleteanother gr8 piece of urs.....keep it up
ReplyDeleteफिर भी खड़ा
ReplyDeleteहूँ मैं यहीं
कि साक्ष्य
हूँ मैं
अर्ध सत्य का ... सुंदर ।