कैद
हूँ मैं
न
नही किसी पिंजडे में
जकडा हूँ इस हाल में
जैसे मकडा अपने ही जाल में
उलझन
कैसी ये
संवेदनाएं मेरी ये
सब शून्य होती
अब
मैं स्वयं नही
निकलना चाहता
क्यूंकि
अब हो चुका हूँ
इस जाल का अभ्यस्त मैं
अब
हूँ यहीं पे व्यस्त मैं.....
हो चुका हूँ अभ्यस्त मैं........
हो चुका हूँ अभ्यस्त मैं॥
nice thought..
ReplyDeletethanks saumya
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