Tuesday, November 3, 2009

प्राण मेरे ...

प्रशन पूछे
जब से मैंने
मुझको तब से
लांछित ही किया

स्वप्न देखे
जब से मैंने
लोगों ने तब से
सोने न दिया

जीवन माँगा
जब से मैंने
मृत्यु का
वरदान दिया


शब्द मांगे
जब जब मैंने
मूक मुझको
तुमने किया

दृढ इरादों
से उठा मैं
सहसा धकेला
और गिरा दिया

पर जब से मैंने आँखें खोली
प्रशन पूछे ---- अनवरत
स्वप्न देखे ---- अप्रत्यक्ष
शब्द बोले ---- अकथित

जीवन जिया
फिर
खुद की तरह


प्राण पंख में भर कर
फिर उढा मैं
ऊँचा
और
ऊँचा
शुन्य व्योम का
छोर तलाशने को
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