Tuesday, November 3, 2009

कायर..

सुबह
कभी देखि नहीं
बस
देखे तो
तारे झिलमिल
आकाश धूमिल
बस देखी
ये मांगे सूनी
ये बाहें खूनी
की बस सुना
यही शोर अबतक
अब ये कोहराम कब तक
रात में दर पे होती दस्तक
खोला मैंने
दरवाज़ा
भाई था मेरा
खून में लतपत
बस
यही देख
मैंने भी तलवार उठाई
और बन गया
मैं भी
कायर ...

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