मेरी रातें छोटी
दिन कम होने लगे थे
नींद कम आती थी
रात
गेहरी
कुछ सोचते बीत जाती थी
कभी सुनता
सन्नाटे का शोर
कुछ कहता था
अव्वाजें बहुत हैं
सोने नहीं देती
आँखें मेरी चौकन्नी होती
हर आहट पर उठ जाता मैं
कुछ न पाता तो घबराता मैं
शायद
स्थिर नहीं हूँ
ठहराव चाहिए
ज़रूरी है
पर
बहते रहने को मन था ॥
achchi hi hogi
ReplyDeletewow,,, samajh aa gayi deep thinking
ReplyDeletenice...
ReplyDeleteभाव अच्छे हैं. आप छंद मुक्त
ReplyDeleteकविता लिखें. निखार आ जायेगा.
लेखन नियमित रखें, शुभकामनायें !!
dhanya vaad
ReplyDeleteexactly, the heart must go on...
ReplyDeletehmm..
ReplyDeletebahut khoobsoorat nazm hai
ReplyDeletefinally...something i can relate to... :-)
ReplyDeletemjhe samajh hi nai ai :-( aisa lag raha hai koi life ki bhagdaud se pareshan hai n needs a break. bt break lene ka time nahi hai :-)
ReplyDelete@all thanks
ReplyDeletenice one again...
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