Tuesday, February 2, 2010

नींद से पहले..

कमबख्त नींद न जाने कब आएगी
ये रात भी यूँ ही करवटों में गुज़र जाएगी
आँख झापकौं तो सपनो में आ के सताएगी
तू मेरी है और मेरी ही कहलाएगी


तू अपने संग फिर कई रंग लाएगी
तेरी हसी तारों सी झिल्मिलाएगी
तेरी चुनरी फिर से हवा में लहराएगी
तू मेरी है और मेरी ही कहलाएगी

न जाने कितने पतझड़ कितने वसंत लाएगी
तेरे आने पे मोर नाचेंगे कोयल गुनगुनायेगी
मेरे इश्क की तासीर और गहराएगी
तू मेरी है और मेरी ही कहलाएगी

की मोहब्बत यूँ ही परवान चढ़ती जाएगी
क्या इतना करम मुझपे कर पायेगी
की कह दे
हाँ कह दे..
मैं तेरी हूँ और तेरी ही कहलाउंगी
मैं तेरी हूँ और तेरी ही कहलाउंगी

2 comments:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

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  2. aap ka bahut bahut dhanyavaad

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