Tuesday, October 27, 2009

अर्धसत्य..










सघन ये वन

निशा ये गहन

करता मैं हूँ वहां

ह्रदय में दहन

चकित ये मन

आरोपी मैं बन

भागता हूँ ख़ुद से अब

कि मेरा

दोष बस इतना

कि मैं ढूंढता हूँ सत्य

मर्म से संपूर्ण

बिना जाने उसे

मैं हूँ अपूर्ण

सत्य कि पीड़ा मैंने सही

फिर भी खड़ा

हूँ मैं यहीं

कि साक्ष्य

हूँ मैं

अर्ध सत्य का ...

3 comments:

  1. baba, aap to ab maunjh chuke hain is feild mein......awesome and flawless work as usual

    ReplyDelete
  2. another gr8 piece of urs.....keep it up

    ReplyDelete
  3. फिर भी खड़ा

    हूँ मैं यहीं

    कि साक्ष्य

    हूँ मैं

    अर्ध सत्य का ... सुंदर ।

    ReplyDelete